इस्लामिक कलैण्डर
में भी 12 महीने होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे की अंग्रेजी के कलैण्डर मे होता है. इस्लामिक
कलैण्डर के आखिरी महीने को ही जिल हिज्जा (हज) के नाम से जाना जाता है। और मुस्लिम
इस महीने मे सफर करते हैं मक्का की जो सऊदी अरब मे है।
इस्लाम में (पांच) 5 महत्वपूर्ण पिलर (स्तम्भ)
हैं
इस्लाम में (पांच) 5
महत्वपूर्ण पिलर (स्तम्भ) हैं जो हर मुस्लिम पर फर्ज है की उस का अमल करे अपनी
दुनियाबी जिदंगी में।
1.
इमान (कलमा) – हर
मुस्लिम पर कलमा वाजिब है कि वह कलमा पडे
और हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (पैगम्बर मोहम्मद) पर ईमान लायेगा अर्थात् उन्हे मानेगा। और अल्लाह के सिवा किसी को दूसरे को नही पूजेगा।
और हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (पैगम्बर मोहम्मद) पर ईमान लायेगा अर्थात् उन्हे मानेगा। और अल्लाह के सिवा किसी को दूसरे को नही पूजेगा।
2.
नमाज - हर मुस्लिम
पर (पांच) 5 वक्त की नमाज फर्ज है। अर्थात् वह पड़ेगा । जैसे कि
1
फजर . 2- जोहर . 3- असर . 4- मगरिब . 5- ईशा
3.
रोजा (रमजान) –
रमजान इस्लामिक कलैण्डर के मुताबिक नौवे 9 महीने का नाम है। जिस महीने मे सभी
मुस्लिम रोजा रखते हैं जोकि मुस्लिमो पर फर्ज है या यू कहे की बहुत जरुरी है।
4.
जकात – “पाक या साफ करने वाला” या जकात अल-माल ( सम्पती पर जकात ) जिसे इस्लाम
के प्रकार से दान देना भी कहा गया है। हर मुस्लिम को अपने धन मे से जकात की अदायगी
जरूरी है। यह एक धार्मिक कर या टैक्स माना जाता है। जो फर्ज भी है ।
अपनी पूरी सम्पति का
2.5% भाग या हिस्सा गरीबो मे तकसीम (दान) करना ही जकात
कहलाता है। जैसे 100000 एक लाख का 2500 रुपया दान किया जाना चाहिये।
5.
हज – वैसे तो हर
मुस्लिम पर 4 चीजे फर्ज है. जैसे कि इमान, नमाज, रोजा और जकात पर अगर अल्लाह पाक
ने आप को नवाजा है पैसो से जान माल से या आर्थिक रूप से तो उस मुस्लिम पर फर्ज है
कि वह एक बार अपनी पूरी जिदंगी मे हज के
लिए जाये । चाहे वह पुरूष हो या महिला उसे एक बार कम से कम मक्का की यात्रा करनी
चाहिए। जिसको हज कहते हैं।
हज यात्रा कब होती
है।
हज की यात्रा
इस्लामिक कलैण्डर के आखरी महिने यानी हज के 8वी तारीख से लेकर 12वी तारीख तक
मुकम्मल होती है यह सिलसिला पॉंच 5 दिन तक चलता है या यूं कहे की यह रस्म 5 दिन तक
चलती है।
हज यात्रा के दौरान
पूरी की जाने वाली रस्मे।
1 इहराम
इहराम के दौरान सभी हज यात्रियों को एक खास तरह का सफेद रंग का कपडा
पहनना पडता जिसे इहराम कहा जाता है । यह दोनो के लिए वाजिब होता है चाहे वह मर्द
हो या औरत ।
ऐसा क्यो
ऐसा इस लिए क्यो कि हज मे जाने वाले सभी मुस्लिम एक हैं और हज
यात्रियो मे कोई महंगा कपडा पहना होता है तो कोई सस्ता, कोई हीरा तो कोई सोना या
कोई चांदी या यू कहे की कोई बडा तो कोई छोटा, ये सब उतार कर सिर्फ इहराम ही पहना
जाता है। कोई राजा तो कोई प्रजा । सभी भेदभाव से दूर होकर एक नियत के साथ सफेद रंग
का इहराम पहते है।
1 तवाफ -
सारे हज यात्री मस्जिद अल-हरम जिसमे काबा स्थित है। इस्लाम मे यह सबसे
पाक (पवित्र) स्थल है। मस्जिद अल-हरम जो कि काबा को पूरी तरह से घेरे हुए है। यह
मस्जिद दुनिया की सबसे बडी मस्जिद है। दुनिया भर के मुस्लिम चाहे वो जिधर कही भी
हो वो या जिस किसी भी देश मे हो वो नवाज पढते समय मुख (चेहरा) इस काबे की तरफ करते
हैं।
सारे हज यात्री मस्जिद अल-हरम जिसमे काबा स्थित है उस काबा मे सुई की
उलटी दिशा मे सात बार परिक्रमा (फेरा) लगाते हैं।
सई -
तवाफ के बाद यात्री काबा
के पास स्थित दो पहाडियां है । जिनका नाम सफा और मारवाह है। इन दो पहाडियो के बीज
हज यात्री दौड लगाते हैं इस पहाडी से उस पहाडी , या यूं कहे की सफा से मारवाह और
मारवाह से सफा। इस तरह यह सात बार दौड लगाते हैं।
तवाफ और सई की रस्म को उमरा कहा जाता है । या इसे छोटा हज भी कहा जाता
है। फिर इसके बाद हज की पूरी प्रकिया शुरु होती है।
हज का पहला दिन
तवाफ और सई की रस्म यानि उमरा
कर के यात्री अगले दिन सुबह यानि फजर की नमाज अदा कर के मक्का से 5 किलोमीटर से
दूर मीना पहुंचते , बाकी का दिन यही रहते है और दुआ करते हुए नमाज पढते हैं।
हज का दूसरा दिन
अराफात – मीना से 10 किलोमीटर दूर अराफात की पहाडी पर पहुंचते है और
नमाज अता करते दुआ मांगते है कहते यहां पर जोहर का वक्त (दोपहर) गुजारना बहुत
जरुरी भी है, वरना आप का हज अधूरा माना जाएगा
हज का तीसरा दिन
हज का तीसरा दिन बकरीद का दिन होता है, इस हज यात्री फिर से मीना जाकर
शैतान को तीन बार ककंडिया मारते हैं। मीना मे तीन बडे बडे पत्थरो के पिलर या
स्तम्भ बने हुए हैं जो कि तीन शैतान को दर्शाते हैं। इस दिन हज यात्री के सबसे बडे
वाले पिलर यानी शैतान को मारते हैं, शैतान को मारने कि प्रकिया अभी 2 बार और करनी
होती है जो बाद मे होती है।
शैतान को ककंडिया मारने के बाद बकरे या ऊंट हलाल (काटे) किये जाते हैं
और जरुरत मंद लोगो मे तकसीम किया जाता है।
बकरे की कुर्बानी के बाद अब यात्रियो के सिर के बाल काटे जाते हैं।
बाल कटवाने के बाद एक बार से तवाफ यानि काबा शरीफ की परिक्रमा की जाती
है ,यानि मक्का जाकर काबा के सात बार चक्कर लगाया जाता है।
हज का चौथा दिन
इस दिन सिर्फ शैतान को पत्थर मारने की रस्म ही होती है. हाजी मीना जाकर
तीनो शैतान को ककंडिया मारते हैं जो तीन स्तम्भो के रूप मे मौजूद हैं. इस बार तीनो
शैतानो को सात-सात बार ककंडिया मारते हैं. जो उम्र में ज्यादा हैं उनकी तरफ से दूसरा
व्यक्ती ककंडिया मार सकता है अगर वह उसे एजाजत दे तब .
हज का पांचवा और आखरी दिन
इस दिन सिर्फ शैतान को पत्थर मारने
की रस्म ही होती है. फिर मक्का के लिये रवाना हो ते हैं
आखरी दिन हाजी फिर से तवाफ की रस्म पूरी की जाती है. और कुछ हज यात्री
मदीना शरीफ जाते हैं जिधर हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (पैगम्बर मोहम्मद) मकबरा
मौजूद है .
thank you islamic Informaiton
ReplyDelete